Satta Matka King: जानें कौन था रतन खत्री, मटका किंग के नाम से मशहूर यह शख्स है सट्टेबाजी का बादशाह

भारत में खत्री ने जुए की दुनिया में अपने लिए एक जगह बनाई. 1962 में मुंबई में सट्टेबाजी का नया तरीका शुरू हुआ था, जिसे मटका कहा जाता था. रतन खत्री ने इसे एक बड़े रैकेट में तब्दील किया. खत्री देश में दशकों तक चलने वाले गैम्बलिंग नेटवर्क की स्थापना की थी.

Satta Matka King: 

मटका किंग (Matka King) के नाम से मशहूर रतन खत्री ने एक बार फिर लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है. हाल ही में रिलीज हुई कार्तिक आर्यन अभिनीत फिल्म चंदू चैंपियन में भी यह किरदार एक बार फिर सुर्ख़ियों में आ गया. यहां हम आपको रतन खत्री के बारे में बता रहे हैं. रतन खत्री भारत में सट्टेबाजी की शुरुआत कर उसे ऊंचाई पर ले जाने वाले माने जाते हैं. खत्री सिंधी परिवार से थे. 1947 में भारत विभाजन के बाद खत्री पाकिस्तान से भारत आए. जिंदगी में आगे चलकर उन्हें मटका किंग के नाम से जाना गया था.

सट्टेबाजी का बादशाह

भारत में खत्री ने जुए की दुनिया में अपने लिए एक जगह बनाई. 1962 में मुंबई में सट्टेबाजी का नया तरीका शुरू हुआ था, जिसे मटका कहा जाता था. रतन खत्री ने इसे एक बड़े रैकेट में तब्दील किया. खत्री देश में दशकों तक चलने वाले गैम्बलिंग नेटवर्क की स्थापना की थी.

मटका, जो न्यूयॉर्क कॉटन एक्सचेंज में कपास के शुरुआती और समापन दरों पर सट्टेबाजी के रूप में शुरू हुआ था, खत्री के प्रभाव में एक बड़े पैमाने पर, राष्ट्रव्यापी जुआ नेटवर्क के रूप में विकसित हुआ.

शुरुआत में खत्री कल्याणजी भगत के अधीन काम करते थे, जो मटका जुए की दुनिया में एक और महत्वपूर्ण व्यक्ति थे, जिन्हें वर्ली मटका के लिए जाना जाता था. खत्री ने अंततः रतन मटका की स्थापना करके अपना खुद का कारोबार शुरू किया. उनके नेटवर्क में कथित तौर पर दुनिया भर की मशहूर हस्तियां और हाई-प्रोफाइल लोग शामिल थे, जिनकी वजह से रतन खत्री मटका किंग बन गए.

चुनौतियों से लड़कर बने किंग

खत्री का जीवन चुनौतियों से भरा रहा. भारत में आपातकाल के दौरान, उन्हें जेल में डाला गया और 19 महीने सलाखों के पीछे बिताने पड़े. इन असफलताओं के बावजूद, वे 1990 के दशक की शुरुआत में अपने रिटायरमेंट तक जुए के क्षेत्र में एक प्रमुख व्यक्ति बने रहे. 2020 में उनका निधन हो गया, और वे अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ गए जो लोगों को आज तक आकर्षित कर रही है.

मटका जुए के तंत्र में भी पिछले कुछ वर्षों में महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं. शुरुआत में, इसमें कपास की कीमतों पर दांव लगाना शामिल था, लेकिन 1960 के दशक तक, इसे मटका (मिट्टी के बर्तन) से पर्चियां निकालने सहित रैंडम नंबर चुनने के विभिन्न तरीकों से बदल दिया गया. खत्री विशेष रूप से नंबर निकालने के लिए ताश के पत्तों के उपयोग के लिए जाने जाते थे.

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